लब पे' आती
है दुआ बन
के तमन्ना मेरी,
ज़िन्दगी शमा की
सूरत हो ख़ुदाया
मेरी ।
दूर दुनिया का मेरे
दम से अंधेरा
हो जाए
हर जगह मेरे
चमकने से उजाला
हो जाए ।
हो मेरे दम
से यूँ ही
वतन की ज़ीनत,
जिस तरह फूल
से होती है
चमन की ज़ीनत
।
ज़िन्दगी हो मेरी
परवाने की सूरत
या रब !
इल्म की शमा
से हो मुझ
को मुहब्बत या
रब !
हो मेरा काम
ग़रीबों की हिमायत
करना,
दर्दमंदों से, ज़ईफ़ों
से मुहब्बत करना
।
मेरे अल्लाह, बुराई से
बचाना मुझ को,
नेक जो राह
हो, उस रह
पे' चलाना मुझ
को ।
Reference: qasba (Ravish Kumar)
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